कठुआ केस में इंसाफ की मुहिम छेड़ने वाले सेलिब्रिटी कहां गायब हो गए?

कठुआ केस में बुद्धिजीवी गैंग के Hit and Run फॉर्मूले आज सबसे पहले हम कठुआ केस में बुद्धिजीवी गैंग के Hit and Run फॉर्मूले का DNA टेस्ट करेंगे. अप्रैल में हमने पूरे देश को कठुआ का सच बताया था और आज हम इस केस का इस्तेमाल करके शोहरत कमाने वालों को Expose करेंगे. आज सवाल ये है कि कठुआ केस में इंसाफ की मुहिम छेड़ने वाले Celebrity अब कहां गायब हो गए?

ख़बर ये है कि कठुआ गैंगरेप में पीड़ित बच्ची के परिवार ने पठानकोट की अदालत में अपील करके, अपनी वकील दीपिका राजावत को हटाने की गुज़ारिश की है. नोट करने वाली बात ये है कि अदालत में 110 बार सुनवाई हुई, लेकिन दीपिका राजावत सिर्फ 2 से 3 बार ही अदालत में पेश हुई ! ये वही दीपिका राजावत हैं जिन्होंने 6 महीने पहले JNU वाले बुद्धिजीवियों के गैंग के साथ मिलकर सिर्फ भारत ही नहीं.. पूरी दुनिया में एजेंडा चलाया था और एक के बाद एक.. अवॉर्ड बटोरे थे. 

उस समय हमारे देश के कई बड़े बड़े सेलिब्रिटीज़.. हाथों में बैनर लेकर सोशल मीडिया पर एजेंडा चला रहे थे. और ऐसा माहौल बनाया जा रहा था जैसे भारत बहुत असुरक्षित देश है. ये सारा विरोध सिर्फ सोशल मीडिया पर हो रहा था. सिर्फ Twitter पर फोटो Post करके और अलग अलग Hashtag Trend करवा कर औपचारिकताएं निभाई जा रही थीं. उस समय Crowdfunding के ज़रिए लाखों रुपये इकठ्ठा किए गये थे… लेकिन जैसे जैसे वक़्त गुज़रा.. लोगों की नीयत भी बदलती चली गई. अब पीड़ित बच्ची का परिवार ये आरोप लगा रहा है कि जो पैसा इकठ्ठा किया गया उसमें से उन्हें सिर्फ़ एक लाख रुपये मिले. हालांकि Crowd Funding करने वाली संस्था का दावा है कि इस परिवार के अकाउंट में 19 लाख 23 हज़ार 774 रुपये जमा किए गये थे. हम ये पूरा मामला आपको विस्तार से समझाएंगे.

कठुआ गैंगरेप केस, इस वर्ष का सबसे चर्चित मामला था . बुद्धिजीवियों ने Social Media पर इस पूरे मामले को लेकर योजनाबद्ध तरीके से अभियान चलाया था . रेप और मर्डर के मामले को, एक खास विचारधारा के लोगों ने हिंदू-मुस्लिम मामले में बदल दिया था . बुद्धिजीवियों ने ये कहकर पूरे मामले को खूब प्रचारित किया, मंदिर में गैंगरेप हुआ. इसके बाद हिंदू धर्म को अपमानित करने वाली टिप्पणियों से Social Media के Page भर दिए गए . इस केस में सच और झूठ पर पूरे देश में बहस छिड़ गई थी . उस वक्त भारत के तमाम News Channels और Media समूह, इस एजेंडे का शिकार हो गए थे. इस मामले में मूल मकसद होना चाहिए था… बच्ची को इंसाफ दिलाना, लेकिन सभी का ध्यान इस बात से हट गया . 

इस पूरे मामले को अब 10 महीने बीत चुके हैं . ये मामला पठानकोट की Fast Track Court में चल रहा है . अब तक 100 से ज़्यादा गवाह, अदालत के सामने पेश हो चुके हैं . करीब 6 महीने से इस केस में सुनवाई चल रही है . लेकिन अचानक पीड़ित बच्ची के पिता ने ये मांग की है कि वकील दीपिका रजावत को इस केस से हटा दिया जाए . Zee News के पास बच्ची के पिता का बयान मौजूद है . लेकिन कैमरे वाले बयान को देश के सामने उजागर करना सही नहीं होगा. इसलिए ये बयान हम आपको नहीं दिखा रहे हैं . लेकिन पीड़ित परिवार का बयान हम आपको पढ़कर सुनाते हैं . 

पीड़ित बच्ची के पिता ने अपने बयान में कहा है कि दीपिका रजावत को केस से हटाने के लिए हम पठानकोट आए हुए हैं . पठानकोट में 110 पेशी हुई है और उसमें वो केवल 2 से 3 बार आई . वो मीडिया को बोल रही है कि मेरी जान को खतरा है . 

यानी जो वकील पीड़ित बच्ची का केस मुफ़्त में लड़ने की मार्केटिंग कर रहे थे, उन्होंने अदालत में पेश होना भी ज़रूरी नहीं समझा. और तमाम सेलिब्रिटी भी सब भूल गये और अपनी अपनी शूटिंग में व्यस्त हो गये. यानी केस उठाओ, नफ़रत फैलाओ, शोहरत कमाओ, अवॉर्ड जीतो और गायब हो जाओ ! ये शोहरत कमाने की अनैतिक विधि है

अगर पीड़ित बच्ची का परिवार, अपनी वकील दीपिका राजावत को इस केस से हटाने के लिए कह रहा है . तो आप ये समझ सकते हैं कि इस परिवार के मन में कितना दुख और गुस्सा होगा ? ये वही दीपिका राजावत हैं जिन्होंने कठुआ केस को ज़ोर शोर से उठाने की मार्केटिंग की. उन्होंने कहा था कि वो पीड़ित परिवार का केस मुफ़्त में लड़ेंगी. तब उनकी इस बहादुरी की बहुत तारीफ हुई थी.

कई अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में उनकी हिम्मत पर लेख लिखे गए थे. इसके बाद उन्हें कई पुरस्कार भी मिले. उन पुरस्कारों की List हम आपको आगे दिखाएंगे . लेकिन पहले आप दीपिका राजावत के नये तेवर देखिए. अब वो पीड़ित बच्ची के पिता पर ही ये सवाल उठा रही हैं कि… बच्ची के पिता खुद कितनी बार अदालत की सुनवाई में हाज़िर हुए ? आगे बढ़ने से पहले आप दीपिका राजावत की पूरी सफ़ाई सुनिए

आपने सुना कि केस की सुनवाई के दौरान गैर हाज़िर रहने के लिए क्या तर्क दिए गए हैं . ये कहा जा रहा है कि ये केस State का है . 150 किलोमीटर दूर पठानकोट रोज़ कैसे आया जा सकता है ? पठानकोट जाने से Paid Work पर असर पड़ेगा . वकील तो Daily Wages यानी ‘दैनिक मज़दूरी’ के लिए हर दिन मेहनत करता है . लेकिन सवाल ये है कि 6 महीने पहले जब दीपिका राजावत, शहला राशिद के साथ मिलकर Light Camera और Action कर रही थीं. तब उन्होंने अपनी Daily Wages के बारे में नहीं सोचा था?

जिस केस ने दीपिका राजावत को इतनी शोहरत दिलवाई . और इतने सारे पुरस्कार दिलवाए . उस केस में उन्हें कोई कमी नहीं छोड़नी चाहिए थी . लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अब ये देखते हैं कि दीपिका राजावत को इस केस की वजह से कौन कौन से सम्मान मिले.

पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानी POK की सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने दीपिका राजावत को कठुआ केस में हिम्मत दिखाने के लिए honorary membership दी थी . 

Indian Merchants Chamber of Commerce & Industry Ladies Wing ने भी दीपिका राजावत को ‘Woman of the Year’ का सम्मान दिया था . 

अक्टूबर 2018 में मुंबई में उन्हें Mother Teresa Memorial Award दिया गया . 

लेकिन इतने सारे पुरस्कार और सम्मान पाने वाली दीपिका राजावत को अब पीड़ित परिवार ही इस केस से हटाना चाहता है . दीपिका राजावत ने इसकी भी जांच करने की मांग की है. हमें भी लगता है कि इस मामले की जांच होनी चाहिए ताकि ये पता चल सके कि आखिर क्यों एक पीड़ित परिवार को इतना मजबूर होना पड़ा कि उसे अपनी ही वकील को हटाने के लिए पठानकोट आना पड़ा. 

सबसे बड़े आश्चर्य की बात ये है कि दीपिका राजावत खुद ये कह रही हैं कि बार-बार 150 किलोमीटर दूर पठानकोट जाना मुश्किल है . लेकिन सम्मान और पुरस्कार ग्रहण करने के लिए वो Canada तक चली गई थीं . 

हम आपको एक तस्वीर दिखा रहे हैं . ये तस्वीर Canada की हैं . 4 जून 2018 को वो 
Canada के Vancouver शहर में “Humanitarian 2018 Award” ग्रहण कर रही थीं . ये जगह दिल्ली से 11 हज़ार किलोमीटर दूर है . लेकिन यहां पर जाना दीपिका राजावत के लिए काफी आसान है . लेकिन पंजाब के पठानकोट तक जाना उन्हें मुश्किल लग रहा है . 

आपको याद होगा Social Media पर इस मामले में लोगों से Crowd Funding की भी अपील की गई थी . दुनिया भर में लोगों से पीड़ित परिवार की आर्थिक मदद की अपील की जा रही थी . आर्थिक मदद के नाम पर पूरी योजना के साथ देश की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बदनामी की जा रही थी . अब इसे लेकर पीड़ित परिवार का कहना है कि ‘बाहर से पैसा तो बहुत आया है लेकिन हमें कुछ नहीं पता’.

एक बार फिर हम आपको ये बताना चाहते हैं कि इस संबंध में हमारे पास पीड़ित बच्ची के पिता और दादा के बयानों के Videos मौजूद है . लेकिन कैमरे पर रिकॉर्ड हुए इन बयानों को उजागर करना उचित नहीं होगा. इसलिए हम आपको सिर्फ पीड़ित परिवार के बयान पढ़कर सुना रहे हैं . 

पीडित बच्ची के पिता ने आर्थिक मदद के मामले में आरोप लगाते हुए कहा है कि उन्हें पैसे के बारे में कुछ पता नहीं है. बैंक वाले कहते हैं कि पैसा नहीं आया. पहले ये कहा जाता था कि बाहर से भी बहुत मदद हुई और बहुत ज्यादा पैसा आया, लेकिन अब परिवार कह रहा है कि उन्हें नहीं पता कि पैसा कहां हैं. 

पीड़ित बच्ची के दादा का भी कहना है कि उन्हें पता चलता रहा कि काफी पैसा आया है, लेकिन उन्हें उतना पैसा मिला नहीं. उनका कहना है कि उन्हें अभी तक सिर्फ 1 लाख रुपया मिला है. 

यहां आपको एक बार फिर से ये बता दें कि Crowd Funding करने वाली संस्था का दावा है कि इस परिवार के अकाउंट में 19 लाख 23 हज़ार 774 रुपये जमा किए गये हैं. 

आपको बता दें कि जिस दौरान इस के लिए के लिए Crowd Funding की जा रही थी, उसी दौरान उन्नाव का एक रेप केस मीडिया की सुर्खियों में था. जहां बीजेपी के एक विधायक पर नाबालिग लड़की से रेप का आरोप लगा था. इसलिए Crowd Funding इन दोनों मामलों के लिए हुई थी. और Crowd Funding करने वाली संस्था का दावा है कि इन दोनों मामलों के लिए 1 हज़ार 575 लोगों ने 40 लाख रुपये जमा किए थे. और इसमें से 19 लाख 23 हज़ार 774 रुपये कठुआ की गैंगरेप पीड़ित के परिवार के नाम पर जमा है. 

इसलिए इस बात की भी जांच करने की ज़रूरत है कि कहीं इस पूरे मामले में कोई गड़बड़ी तो नहीं है. क्योंकि बड़ा सवाल ये है कि अगर पीड़ित परिवार के नाम पर लाखों रुपये जमा हैं, तो फिर वो उन्हें मिल क्यों नहीं पा रहे? 

JNU के कुछ छुटभैय्ये नेता भी इस Crowd Funding की योजना में शामिल थे . जो अब पीड़ित परिवार के आरोपों पर ख़ामोश हैं . अप्रैल के महीने में जब कठुआ मामले पर Crowd Funding हो रही थी . तब ही हमने इस पैसे में पारदर्शिता की मांग की थी . 

हमें लगता है कि बुद्धिजीवियों ने बहुत आसानी से शोहरत और पैसा कमाने का एक नया Formula ढूंढ निकाला है. 

इस फॉर्मूले की शुरुआत होती है… अपराध के मामलों से . बुद्धिजीवी अपनी निगाहें हमेशा चौकन्नी रखते हैं . सबसे पहले वो अपराध के किसी ऐसे मामले को चुनते हैं . जिस पर जातिवाद या फिर सांप्रदायिकता की राजनीति की जा सके .

इसके बाद बुद्धिजीवी ऐसे मामलों में हिंदू-मुस्लिम Angle निकालते हैं .

फिर देश के बहुसंख्यक समाज के खिलाफ नफरत फैलाने वाला अभियान चलाया जाता है . रैलियां निकाली जाती हैं . शोक सभाएं आयोजित होती हैं . 

इसी तरह Social Media पर भी विशेष तरीकों से पीड़ित के नाम को प्रचारित किया जाता है ताकि लोगों की भावनाओं को भड़काया जा सके . 

इसके बाद Crowd Funding के नाम पर लोगों से पैसा इकट्ठा किया जाता है . 

और फिर पूरी शोहरत कमाने के बाद निजी मजबूरियों का हवाला देकर पूरे Case से पीछा छुड़ा लिया जाता है. 

इसके बाद बुद्धिजीवियों को कुछ नहीं करना होता. राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के दूसरे बुद्धिजीवी, इन लोगों पर कई सम्मान और पुरस्कार समर्पित कर देते हैं . 

इस फॉर्मूले का इस्तेमाल करके कई छुटभैय्ये वकील, नेता और पत्रकार, अब दुनिया के महान बुद्धिजीवियों की श्रेणी में आ चुके हैं . 

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