जब छलका था बापू का दर्द ऑल इंडिया रेडियो पर प्रसारित एकमात्र भाषण में
राष्ट्रपति महात्मा गांधी द्वारा ऑल इंडिया रेडियो पर दिए गए एकमात्र भाषण को 71 वर्ष बीत चुके हैं। इन 71 वर्षों में भारत ने काफी तरक्की की और काफी कुछ बदल गया। लेकिन उस वक्त जब देश के बंटवारे के बाद सरहद के दोनों तरफ ही शरणार्थियों की लंबी कतारें थी और हर तरफ हाहाकार मचा हुआ था, उस वक्त केवल बापू ने ही उनके दर्द को कुछ कम करने और उनके जख्मों पर मरहम लगाने का काम किया था। उस वक्त हर तरफ भयानक मंजर था। लोग अपनों को ही मार रहे थे, लूट का दौर अपने चरम पर था। जो कभी एक साथ रहते थे वही अब जान के दुश्मन बन रहे थे। आपसी द्वेष चरम पर था। ऐसे में पाकिस्तान से रातों-रात अपना घरबार छोड़कर भारत के तत्कालीन राज्य पंजाब (आज के हरियाणा) के कुरुक्षेत्र आकर बसे लाखों शरणार्थियों को महात्मा गांधी ने अपना संदेश भेजा। इस संदेश को भेजने के लिए उन्होंने पहली बार ऑल इंडिया रेडियो का इस्तेमाल किया था। इस भाषण में उनकी बोली में वह दर्द साफ छलक रहा था जो उस वक्त लाखों लोग झेलने को मजबूर थे। आइये जानते हैं इस संदेश में बापू ने क्या कहा था।
क्या कहा था बापू ने
‘मेरे दुखी भाईयों और बहनों। मुझे पता ही नहीं था कि सिवाए आपके मुझे कोई सुनता भी है या नहीं, ये अनुभव मेरे लिए दूसरा है। पहला अनुभव इंग्लैंड में हुआ था जब मैं राउंड टेबल कांफ्रेंस में गया था। मुझको पता ही नहीं था कि मुझको इस तरह से कुछ बोलना भी है। मैं तो एक अंजान पुरुष हूं, मैं कोई दिलचस्पी भी नहीं लेता हूं, क्योंकि दुख के साथ मिल जाना ये तो मेरा जीवन भर का प्रयत्न है। जीवनभर का मेरा पेशा है, जब मैंने सुना कि आप लोगों में करीब ढाई लाख रिफ्यूजी पड़े हैं और सुना कि अभी भी लोग आते रहते हैं तो मुझको बड़ा दुख हुआ। मुझे ठेस लगी और मुझे ऐसा अहसास हुआ कि मैं आपके पास पहुंच जाऊं’।
ऐसे पहुंचाया गया लाखों शरणार्थियों तक संदेश
यह संदेश 12 नवंबर 1947 को प्रसारित किया गया था। उनके इस संदेश के पीछे जो दर्द था उसको वह हरियाणा के कुरुक्षेत्र में रह रहे लाखों शरणार्थियों तक पहुंचाना चाहते थे। बिना रेडियो के ये संदेश उन लोगों तक पहुंचाना संभव नहीं था। ऐसे में पहली और आखिरी बार उन्होंने रेडियो का इस्तेमाल अपना संदेश उन तक पहुंचाने के लिए किया था। इस संदेश को उन शरणार्थियों तक पहुंचाने के लिए कुरुक्षेत्र में मौजूद शरणार्थियों के बीच में एक तख्त पर बापू की तस्वीर लगाई गई और एक माइक को वहां रखे रेडियो के सामने लगा दिया गया। इसकी आवाज लाउड स्पीकर के जरिये दूर तक पहुंचाई गई थी। बापू का यह भाषण करीब 20 मिनट तक चला।
बापू ने की एकजुट रहने की अपील
इसमें उन्होंने पाकिस्तान से अपना घर-बार छोड़कर आए शरणार्थियों से एकजुट होकर मजबूती के साथ हर परिस्थिति का सामना करने की अपील की। बंटवारे की त्रासदी झेल रहे देशवासियों के लिए बापू के इस भाषण ने मलहम का काम किया और उनके जख्मों को भरने में अहम भूमिका भी निभाई। इसके बाद से ही इस दिन को लोक सेवा प्रसारण दिवस के तौर पर मनाया जाने लगा। बापू ने ही पहली बार रेडियो का इस्तेमाल देश में फैल रही नफरत को प्यार में बदलने के लिए किया था।