दिल्ली में ठहरी सिख सियासत… असमंजस में अकाली
सत्ता संग्राम के आखिरी दौर में पहुंचने के बाद भी दिल्ली की सिख राजनीति में ठहराव है। आम आदमी पार्टी, कांग्रेस व भाजपा से किसी तरह की सियासी साझेदारी न होने से दिल्ली अकाली दल के नेता असमंजस में हैं। नेताओं की सियासी सक्रियता भी न के बराबर है। अकाली नेता व समर्थक 1984 से ही कांग्रेस से दूर हैं। वहीं, पंजाब में मजबूत पैठ होने से वह आप के साथ जाने को भी राजी नहीं है, जबकि लंबे वक्त तक सहयोगी रहे एनडीए का हिस्सा न होने से भाजपा का साथ भी नहीं निभ रहा है।
दुविधा इसलिए भी बढ़ी है कि अकाली सीधे तौर पर भी दिल्ली में चुनाव से दूर हैं। अपना प्रत्याशी भी नहीं उतारा है। फिर, वह न तो इंडिया गठबंधन में शामिल हैं, न ही एनडीए में। ऐसे में स्थानीय कार्यकर्ताओं से लेकर कोर वोटर तक यह तय नहीं कर पा रहा है कि किस तरफ जाएं। समस्या इसलिए भी है कि चुनाव के वक्त नेताओं की सक्रियता चरम पर रहती है। यह नेताओं के लिए भागमभाग का दौर है। जबकि अकाली नेता बेरोजगार होकर घर बैठे हैं।
भाजपा नेता मनजिंदर सिंह सिरसा का कहना है कि वर्ष 1984 के बाद पहली बार है कि सिखों को न्याय मिला है। प्रधानमंत्री ने गुरु नानक देव जी की जयंती पर तीन नए कृषि कानूनों के लिए सिख समुदाय से माफी मांगी और कानूनों को रद्द कर दिया। करतारपुर साहिब कॉरिडोर खुल गया। 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस मनाने की घोषणा की। गुरु तेग बहादुर साहिब की 400 वीं जयंती उसी लालकिले पर मनाई, जहां से गुरु साहिब का शहीदी फरमान जारी हुआ था।