सीतारमण ने आरोप और सवालों के जवाब दिए और विपक्ष पर भी जमकर निशाना साधा..

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से GST कंपंसेशन के बकाया भुगतान के लिए बार-बार चिट्ठी लिखे जाने पर हमला किया है। उन्होंने लोकसभा में कहा कि 2017 से पश्चिम बंगाल ने एजी सर्टिफिकेट रिपोर्ट नहीं भेजी है तो हम बकाया का भुगतान कैसे कर दें?
 वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को लोकसभा में बजट पर चर्चा की। इस दौरान सीतारमण ने आरोप और सवालों के जवाब दिए और विपक्ष पर भी जमकर निशाना साधा। इस दौरान उन्होंने अपने पूरे संबोधन में कांग्रेस को निशाने पर रखा। साथ ही केंद्र सरकार से बार-बार बकाया राशि के भुगतान की मांग करने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तृणमूल कांग्रेस पर भी जमकर हमला बोला। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पश्चिम बंगाल की ओर से GST कंपंसेशन के भुगतान को लेकर चिट्ठी लिखे जाने का जिक्र करते हुए कहा कि वे बार-बार कहते हैं कि बकाया पैसा रिलीज करो। उन्होंने कहा, ‘अरे हम तो पैसा देने के लिए तैयार बैठे हैं। निर्मला सीतारमण ने कहा कि बंगाल सरकार चिट्ठी तो लिख रही है लेकिन AG सर्टिफिकेट रिपोर्ट (AG Certificate Report) नहीं दे रही है।’ केंद्रीय वित्त मंत्री ने बयान दिया कि पश्चिम बंगाल ने 2017-18 से 2021-22 तक महालेखाकार (AG) प्रमाण पत्र के साथ GST कंपंसेशन उपकर का दावा नहीं भेजा है। राज्य सरकार बयान से सहमत नहीं है।

भारत सरकार पर पश्चिम बंगाल का बकाया है इतना रुपया

शुक्रवार देर रात एक बयान में कहा गया कि पश्चिम बंगाल के लिए अब तक केवल दो साल (2017-18 और 2018-19) के लिए मुआवजे का भुगतान किया गया है। बाकि समय के लिए मुआवजा राजस्व के आधार पर जारी किया गया है। अगर राजस्व पर विचार किया जाए, तो बाकी के लिए भारत सरकार पर पश्चिम बंगाल का 2,409.96 करोड़ रुपए बकाया है। सीतारमण ने दिसंबर में भी कहा था कि संबंधित AG से प्रमाण पत्र के साथ प्रासंगिक कागजात मिलने के बाद राज्य सरकारों के GST दावों को मंजूरी दे दी जाएगी।

CRPF जवानों की तैनाती के लिए भी बकाया है रुपया

पश्चिम बंगाल सरकार ने वित्त मंत्री के इस दावे को भी खारिज कर दिया कि CRPF की तैनाती के लिए राज्य पर केंद्र का 1,841 करोड़ रुपये बकाया है। बयान में कहा गया है कि भारत के चुनाव आयोग के निर्देशों के अनुसार बलों को तैनात किया गया है। चुनाव के दौरान केंद्रीय बलों की तैनाती की जरूरत को लेकर राज्य सरकारों की सहमति नहीं ली जाती है।
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