डॉ. मृत्युंजय कुमार मिश्र निलंबित, विवादों से रहा है पुराना नाता
शासन ने विवादित अधिकारी डॉ. मृत्युंजय कुमार मिश्र को उनका नाम मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत व अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश समेत अन्य अधिकारियों के स्टिंग के प्रयास को लेकर दर्ज एफआइआर में आने के बाद निलंबित कर दिया है। हालांकि, शासन ने अधिकारिक तौर पर निलंबन का आधार उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में बतौर कुलसचिव उनके विरुद्व सतर्कता विभाग में चल रही खुली जांच व अन्य जांच को बनाया है।
सचिव आयुष शैलेश बगौली द्वार जारी निलंबन आदेश में कहा गया है कि आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय के कुलपति ने यह अंदेशा जताया है कि मृत्युंजय मिश्र के आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय के कुलसचिव पद पर बने रहने से जांच प्रभावित हो सकती है। इस कारण उन्हें तत्काल प्रभावित से निलंबित किया गया है।
उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में कुलसचिव पद पर रहते हुए मृत्युंजय कुमार मिश्र पर नियम विरुद्ध नियुक्ति, वित्तीय अनियमितता और घोटाला करने के आरोप लगे थे। इसके अलावा उन पर आय से अधिक संपत्ति होने का भी आरोप था। इस पर उनके खिलाफ इसी वर्ष सतर्कता विभाग से खुली जांच कराने का निर्णय लिया गया था। हालांकि, अप्रैल 2018 में कुछ दिनों तक कुलसचिव पद का पदभार ग्रहण किया था लेकिन उन्हें कुछ दिनों बाद शासन से संबद्ध कर दिया गया था। इसके विरुद्ध उन्होंने न्यायालय की शरण ली।
हाइकोर्ट ने उनकी शासन में संबद्धता समाप्त करते हुए फिर से कुलसचिव पद पर तैनात करने के आदेश दिए थे। इसी दौरान 25 अक्टूबर को आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय के कुलपति ने शासन को पत्र लिखकर कहा कि डॉ. मृत्युंजय कुमार के कुल सचिव पद पर रहने से उनसे संबंधित जांच और सतर्कता जांच प्रभावित हो सकती है। सचिव आयुष एवं आयुष शिक्षा शैलेश बगौली ने इन तथ्यों को देखते हुए डॉ. मृत्युंजय कुमार मिश्र को निलंबित करने के आदेश जारी किए। इसमें कहा गया है कि निलंबन अवधि में डॉ. मृत्युंजय कुमार शासन में आयुष एवं आयुष शिक्षा विभाग कार्यालय से संबद्ध रहेंगे।
विवादों से मृत्युंजय का पुराना नाता
उत्तराखंड में लेक्चरर के पद पर अपनी तैनाती के बाद से ही डॉ. मृत्युंजय मिश्रा तमाम वित्तीय अनियमितताओं और घपले-घोटालों को लेकर चर्चित रहे हैं। सबसे पहले चकराता और त्यूणी महाविद्यालयों में प्राचार्य के दोहरे प्रभार से चर्चा में आने वाले मिश्रा एक ही शैक्षिक सत्र में दो-दो डिग्रियां हासिल करने को लेकर सवालों के घेरे में आए थे। उसके बाद उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय में 2007 में कुलसचिव के तौर पर नियम विरुद्ध नियुक्ति और खरीद से लेकर नियुक्तियों तक में गड़बडिय़ां करने के आरोप लगे।
इसी तरह आयुर्वेद विवि में भी उनका कार्यकाल विवादित रहा। यहां भी उनकी नियुक्ति पर सवाल उठे। पर उनसे जुड़ी लॉबी अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए विवि एक्ट में संशोधन करने में कामयाब रही। विवि में रहते उन पर तमाम अनियमितताओं व नियुक्तियों में गड़बड़ी के आरोप लगे। राजनीतिक व नौकरशाही के संरक्षण के कारण मिश्रा जितने विवादित हुए, उनकी पहुंच व अनुभव बढ़ता चला गया। यहां तक कि कभी उन्हें अपर स्थानिक आयुक्त बनाया गया और कभी सचिवालय से संबद्ध कर दिया गया। निलंबन की कार्रवाई होने के बाद से उनके दोनों फोन बंद आ रहे हैं।
तकनीकी विवि में भी कई खेल
मिश्रा के तकनीकी विश्वविद्यालय में रहते राज्य सरकार के विभिन्न विभागों व निगमों के लिए लोक सेवा आयोग की परिधि के बाहर के पदों के लिए एजेंसी भी बना दी गई थी। परीक्षा नियंत्रक के रूप में तकनीकी विश्वविद्यालय की जो परीक्षाएं उन्होंने कराई, उस सत्र में सारे प्रश्नपत्र लीक हो गए। इससे विवि की जमकर फजीहत हुई और दोबारा परीक्षा करानी पड़ी।
राज्य संपत्ति विभाग में 24 वाहन चालकों की भर्ती से संबंधित परीक्षा वर्ष 2008 में आयोजित कराई गई थी। इसकी प्रक्रिया व परिणाम के विरुद्ध भी शासन में कई शिकायती पत्र आए, जिसका मिश्रा द्वारा कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए। वर्ष 2009 में उत्तराखंड तकनीकी विवि में समूह ग के पदों की भर्ती को लेकर भी तमाम अनियमितता के आरोप उन पर लगे। वर्ष 2009 में ही उत्तराखंड जल विद्युत निगम के सहायक अभियंता व अवर अभियंता के पदों पर भर्ती परीक्षा भी मिश्रा द्वारा आयोजित की गई थी। परीक्षा में पारदर्शिता न रखने के आरोपों की पुष्टि के बाद उक्त परीक्षा को निरस्त कर दिया गया था। इस कार्यकाल के दौरान उन पर 90 लाख रुपये की वित्तीय अनियमितता का भी आरोप लगा।
आयुर्वेद विवि में विवादित रहा कार्यकाल
आयुर्वेद विश्वविद्यालय में मिश्रा का पूरा कार्यकाल विवादित रहा। उन पर निर्माण, टेंडर, नियुक्तियों सहित तमाम स्तर पर गड़बड़ी का आरोप है। आलम यह कि उनके बिना अनुमोदन शुरू की गई शैक्षिक व गैर शैक्षणिक पदों पर भर्ती राजभवन ने निरस्त कर दी थी। यही नहीं, पूर्व कुलपतियों से उनकी तनातनी भी किसी से छिपी नहीं है। इसके अलावा मुख्य परिसर के हॉस्टल, कैंटीन, वैधशाला आदि का टेंडर एक ही लॉबी के लोगों को देने का भी आरोप उन पर लगा। यहां तक कि पीपीपी मोड पर संचालित धनवंतरी वैधशाला के कर्मचारी गलत ढंग से विवि में अटैच कर दिए। सीसीआइएम में इन्हें विवि का कर्मचारी दिखाया गया। अब निजाम बदलने के बाद यह कर्मचारी बाहर कर दिए गए हैं और वह पिछले काफी दिन से विवि गेट पर धरना दे रहे हैं। पिछले एक साल में कुलसचिव पद से उनकी विदाई और वापसी का ही खेल चल रहा है।
विजिलेंस जांच, धोखाधड़ी का भी मामला
मिश्रा के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले में विजिलेंस जांच चल रही है। आयुर्वेद विश्वविद्यालय में मई 2016 में हुए 65 लाख रुपये के फर्नीचर और चिकित्सकीय उपकरणों की खरीद-फरोख्त के मामले में सीजेएम कोर्ट के आदेश पर तत्कालीन कुलसचिव डॉ. मृत्युंजय मिश्र समेत तीन लोगों पर मुकदमा दर्ज हुआ है। अदालत ने विश्वविद्यालय को फर्नीचर और उपरकणों की आपूर्ति करने वाली फर्म के प्रोपराइटर के प्रार्थना पत्र पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया था। विवि के मुख्य परिसर में बीएएमएस की मान्यता के लिए सीसीआइएम के निरीक्षण के वक्त मौखिक आदेश पर ही यह सामान ले लिया गया, पर भुगतान नहीं किया गया।
2010 में उन पर सरस्वती प्रेस देहरादून द्वारा उत्तर पुस्तिकाओं की आपूर्ति के क्रम में 50 लाख रुपये की धोखाधड़ी किए जाने के आरोप में एफआइआर रायपुर थाने में दर्ज की कराई गई थी। हालांकि, कोई पुख्ता सबूत न होने पर मामले में एफआर लग गई। कैग ने भी विभिन्न प्रेस से बिना निविदा के काम कराने पर अनियमित भुगतान केलिए भी मिश्रा को दोषी ठहराया था। मई 2014 में लक्ष्मण सिद्ध मंदिर मार्ग पर उनसे कथित मारपीट व कार फूंकने का मामला आया। जांच में मामला झूठा निकला।